यीशु का मार्ग   windows 98, ME, 2000, XP      .PDF      English

ईसा मसीह के पथ


अतिरिक्त पृष्ठः

जानकारी: हिन्दुत्व और ईसा मसीह

दूसरे धर्मों के बारे में हमारे अतिरिक्त पृष्ठ बेहतर ज्ञान और अंर्तधार्मिक विचारों के लिए हमारा योगदान है। यहाँ हम हिंदू और ईसाई धर्मों के मध्य समानताओं और असमानताओं पर विचार करेंगे, जो अपने आध्यात्मिक गहराई के प्रति काफी सचेत हैं। हमारा उद्देश्य हिन्दू धर्म की विस्तृत व्याख्या करना नहीं है। पर आवश्यक बिंदुओं पर सूक्ष्मता से विचार किया गया है।

हिन्दू शिक्षा के मूल में एक शब्द है, विभिन्न स्तरों पर 'अवतार': वे लोग जो धरती पर अपने स्वयं के विकास के लिए नहीं हैं, पर स्वैच्छिक रुप से जो देश या मानवता के भले के लिए, 'ईश्वरीय पूर्णता' के स्तर से नीचे आ गए हैं। हालाँकि इस तरह की अवधारणाओं में इस तरह के बार बार हुए अवतारों के बीच अंतर एक दूसरे में घुलमिल जाता है, जबकि यहूदी और ईसाई धारणाएँ 'इतिहास का ईश्वर', इस सन्दर्भ में विकास और मसीहा की विशेष भूमिका के बीच सम्बंध पर जोर देती हैं (अध्याय "आरम्भ में शब्द था" से उद्धरण)।

तो भी ये भारतीय मानसिकता और शब्दावली के परिप्रेक्ष्य में ईसा मसीह के कार्यों को समझने का एक स्वीकृत तरीका है। इसलिए हिंदू योग गुरु अक्सर ईसा मसीह को एक बड़ी भूमिका में देखते हैं आधुनिक ईसाई धर्मशास्त्रियों के मुकाबले, जो ईसा मसीह को एक साधारण मानव और समाज सुधारक मानते हैं। पर कुछ हिंदू भी हैं जो समझते हैं कि ईसामसीह एक सामान्य शिक्षक थे। ये ध्यान रखना चाहिए कि, ईसाई धर्म की आध्यात्मिक गहनता आंशिक तौर पर खो गई थी, जिसे फिर से समझना चाहिए, ताकि दूसरे धर्मों के साथ एक लाभकारी संवाद सम्भव भी हो सके। (यह वेबसाइट अपने पूरे लेखन पर इस पर विचार करती है) *


योग और ईसाई धर्म

ये कहावत कि 'सम्पूर्ण बनो, क्योंकि तुम्हारे स्वर्गिक पिता सम्पूर्ण हैं' (मैथ्यू 5, 48)

पर विचार करने पर हर धर्म का सबसे दिलचस्प प्रश्न आता है कि, उसके व्यावहारिक मार्ग कहाँ ले जा रहे हैं। हिन्दुत्व के सन्दर्भ में ये मार्ग विविध प्रकार के योग हैं, जो मानव की बाहरी और आंतरिक प्रकृति को नियंत्रित कर, आत्मा को ईश्वरीय पूर्णता की ओर अग्रसर करती है।

इस सन्दर्भ में आध्यात्मिक शिक्षा के यूरोपियन तरीके भी हैं, जिनमें नाड़ी तंत्र या चेतना केंद्र जिन्हे योग में "चक्र" कहा जाता है, शामिल हो सकते हैं। इस प्रवृति को स्वतः, जैसा चर्च ने माना, गैर ईसाई नहीं कहा जा सकता, पर इस तरह के प्रयासों के बारे में मध्ययुग के ईसाई योगी पहले से ही जानते थे (Johann Georg Gichtel), और अब उनका अस्तित्व वाकई अनुभव किया जा सकता है - जैसे कि एक्यूपंक्चर के बिंदु अपने आप ताओवाद के नहीं हो जाते, क्योंकि इन बिंदुओं और रेखाओं को अब विद्युतीय तरीके से नापा जा सकता है व सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है (मुख्य आलेख के "दि होली इगरनेस" से उद्धरण)। जर्मन में एक पुस्तक हैः अल्ब्रेच फ्रेंज "ईसाई योगा", ये मानते हुई कि ईसाईयत और योग सम्बंधित हैं।

हालाँकि, ईसाईयों के लिए ये मुद्रा निर्णायक हैः व्यायाम को स्वयं को ईश्वर के प्रभाव में लाने की तैयारी के रुप में देखा जाता है, या भ्रमवश समझा जाता है कि, ईश्वर की परिपूर्णता को इन तकनीकों से प्रबलित किया जा सकता है( जैसे शरीर व श्वसन के व्यायाम, मंत्रों के उच्चारण = ध्वनि की शक्ति, एकाग्रता, ध्यान, ...) ?।

ईसाईयों के लिए एक और विशिष्टताः उदाहरण के लिए, अगर "यीशु शक्ति" की धारणा योग के संदर्भ में हुई है, तो क्या यीशु की रोगहरण शक्ति को, उनके पूरे मानव समुदाय को प्रभावित करने के एक भाग के रूप में देखा जाना चाहिए, या वह केवल एक पृथक आकाशीय शक्ति के रुप में महसूस की गई? अगर कोई अपने को यीशु के साथ सीधे नहीं जोड़ पाता, तो वह कैसे जान पाएगा, कि उसके अनुभव वाकई यीशु से सम्बंधित हैं? (आंशिक तौर पर हमारे मुख्य आलेख के अध्याय "चमत्कारी कार्यों के प्रश्न" से लिया गया)।

कुछ भी हो दूसरे स्त्रोतों से प्राप्त इन परिस्थितिजन्य तरीकों की जगह कुछ मूल ईसाई मार्ग हैं: पर इनमें से कुछ अभी भी हमारे समय में प्रचलित हैं, उदाहरण के लिए माउंट एथोस ग्रीस के रूढि़वादी साधुओं द्वारा किया जाने वाला अभ्यास ("भगवान दया करो") को अगर भारतीय दृष्टिकोण से परिभाषित करें तो यह एक ईसाई श्वसन और मंत्र विधि होगी (मुख्य आलेख में "रेगिस्तान में शांति" देखें)। ध्यान लगाने का एक विशेष ईसाई तरीका भी है, जो हमारे मुख्य आलेख का आधार है, और एक अतिरिक्त पृष्ठ "...ईसाई ध्यान" में वर्णित किया गया है।

भारतीय शब्द योग - शाब्दिक अर्थ "सलीब उठाओ" - का मतलब है अपनी आत्मा से पुर्नसम्पर्क, जैसे कि लैटिन "re-ligion" (पुर्नसम्बंध), शरीर, मष्तिष्क व आत्मा को जोड़ने के हिंदू तरीके।


रहस्यवाद के ईसाई और हिन्दू तरीके

आज सूली पर चढ़ने को अंदर से महसूस करने पर या कि "मिडनाइट आफ दि सोल", "रहस्यमयी मृत्यु" , "खालीपन" से बदलाव, बिना किसी ऐसी चीज को जिसे मानव पकड़ सक, सभी ज्ञात ईसाई रहस्य (उदाहरण के लिए, मास्टर एकेहार्ट) जो किसी न किसी तरह से महसूस किए गए, का भी योग के चरम अनुभव, निर्विकल्प समाधि या 'निर्वाण' के खालीपन के अनुभव से निश्चित सम्बंध है। हालाँकि, ईसाई रहस्य ने अपने अनुभव दिए कि इस खालीपन में या इसके पीछे "कुछ" है, अवश्य ही ईश्वर या यीशु। अरविंदो ने दिखाया, कि "निर्वाण" के भी आगे जाया जा सकता है. जो उसके पीछे है - भारतीय तरीके से। ईसाई तरीके से हालाँकि सभी चीजों के पीछे कोई चीज धार्मिक रास्ते के आरम्भ से ही बहुतायत में हो सकती है, क्योंकि यीशु के होने से, पृथ्वी से होकर जाना एक सेतु का प्रतिनिधित्व करता है।

जब अरबिंदो जैसे किसी का उन शक्तियों से सामना होता है, जिनका सम्बंध यीशु से महसूस होता है, पर पृष्ठभूमि नहीं है, तो यह एक कठिन पर्वतमालाओं की सैर लगती है। यह किसी भी तरह असम्भव नहीं है, हालाँकि हिंदू लड़के साधु सुंदर सिंह का मामला याद किया जा सकता है, जिसे ईसाईयत के बारे में कुछ नहीं पता था, पर जिसने, ईश्वर के लिए काफी अंदरुनी खोज के बाद, अचानक साक्षात यीशु का अनुभव किया, जिसे बाद में पुस्तकों में लिखा गया। और हिन्दूओं के तांत्रिक अनुष्ठानों में जहाँ लोग, जो भारतीय भगवानों के दर्शन की आशा कर रहे थे, को अचानक यीशु के दर्शन हुए। "आत्मा वहाँ जाती है, जहाँ वो जाना चाहती है।"

एक ईसाईयत से सम्बंधित धार्मिक समाज के लिए कोई विशेष प्रासंगिक नहीं, पर दूसरे सांस्कृतिक क्षेत्रों के लिए आर. स्टैनर के संकेत दिलचस्प हो सकते हैं, कि यीशु को पृथ्वी पर आने से पहले एक सूर्य के समान महान संत के रूप में देखा जा सकता है (मुख्य आलेख के "सलीब पर चढ़ाना..." से उद्धरित)। *

हिंदुओं के विभिन्न प्रकार के भगवानों के बारे में, कुछ नए अनुसंधान हुए हैं, जिनके अनुसार कुछ पुरानी संस्कृतियों के "भगवान" , जब तक वे किसी "कबीले के विशेष भगवान" या मानव नायक न हों, एक ही ईश्वर के रूप थे, जिनकी बाद में स्वतंत्र मूर्तियों के रूप में पूजा की जाने लगी। इसलिए, पुराने सैद्धांतिक विवरण जैसे बहुईश्वरवाद (बहुत से ईश्वरों वाले धर्म) बहुत मायने नहीं रखते। यहूदियों के, मूल हिब्रू लेखनों में भी ईश्वरों के बहुत से नाम थे और उनके गुण भी। पर वे उन्हे विभिन्न भगवान मानकर उनकी पूजा करने तक आगे नहीं गए। उदाहरण के लिए, पारसियों ने भी एक ईश्वर की धारणा को ही मान्यता दी।

इस सन्दर्भ में दिलचस्प बात है कि नई कोशिशें हो रही हैं जो शरीर के प्राकृतिक और अनिवार्य नश्वरता की सामान्य अवधारणा को नहीं मानती, जैसे यीशुः उदाहरण के लिए, भारतीय दार्शनिक और योगी अरबिंदो और उनकी आध्यात्मिक साथी, मार मीरा अलफसा ने एक ऐसी ही दिशा पर खोज की। (मुख्य आलेख के "दि रिसरेक्शन" से उद्धरण)


"कर्म" और ईश्वर के बारे में शिक्षा

हिंदू ईसाईयों के सामाजिक कार्यों और दया को "कर्म योग" (भाग्य और दुर्भाग्य की सफाई का योग) या "भक्ति योग" (प्रेम का योग) नाम देंगे। अभिज्ञान के रास्तों (ध्यान सम्बंधी कार्यों को सम्मिलित कर) की "इनान योग" से तुलना की जा सकती है।

कोई वाकई अनुभव कर सकता है कि, जीवन ज्यादा सुव्यवस्थित चल सकता है, अगर यीशु के द्वारा बताए गए भगवान के जीवन के बारे में पथप्रर्दशन को कोई मान्यता देता हो। अगर किसी का इसकी जगह भाग्य के नियमों पर विश्वास है – हिंदू धारणा से, "कर्म" का संतुलन – तो जीवन इन आदर्शों पर ज्यादा चल सकता है। यीशु भी "अंतिम पैसे तक" पुर्नप्रक्रिया की बात करते हैं, पर वे नहीं कहते, कि वह फिर भी होना चाहिए "आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत" (जैसा कि बाइबिल के पुराने नियमों में कहा गया है)। मनुष्य के नए कार्य सामने हैं – जो उसके लिए और उसके वातावरण के लिए लाभप्रद है, उसे यथा सम्भव लिया जाता है, और किया जाता है। बीते हुए को सम्भालना अपने आप में अंत नहीं है, और यह अब विकास के लिए कोई प्रेरणा नहीं है। आज विभिन्न सम्भावनाओं के समय लोगों की मदद देखी जा सकती है। (मुख्य आलेख के अध्याय "दि क्रूसिफिकेशन" से उद्धरित, एक अतिरिक्त पृष्ठ "कर्म और पुर्नजन्म के बारे में शिक्षा" भी उपलब्ध है)।


नीतिगत मूल्य

विश्व के धर्मों की नीतिगत सिद्धांतों में सबसे ज्यादा समानता है, इसलिए इस क्षेत्र में संवाद सबसे अधिक है, उदाहरण के लिए, पतंजलि के प्राचीन योग के सफल होने के लिए पहली आवश्यकता है "यम", किसी भी प्राणी को विचारों, शब्दों या कार्यों से हानि न पहुँचाना, लालची न होना, सच्चाई, यौन पवित्रता, दान स्वीकार न करना (अपने जीविकोपार्जन के लिए)। दूसरा चरण है "नियम" : आंतरिक और बाहरी शुद्धि, विनम्रता, दिखावा न करना, त्याग, उदारता, बलिदान के लिए तत्परता, देवताओं की आराधना, उत्साह और श्रद्धा। योगी बताते हैं कि, भागवतगीता का युद्ध का मैदान भी अपनी आत्मा की शुद्धि की लड़ाई है। स्पष्ट रूप से यीशु की शिक्षाओं और 10 कमांडमेंटस के समानान्तर उद्धरण हैं। हिंदू, ईसाई और अन्य कई धर्मों ने "वैश्विक नैतिकता"।

 * english: www.ways-of-christ.net

मुख्य-पृष्ठ को Ways-of-Christ.com/hi

अग्रिम विषयों के साथ मुख्य अंग्रेज़ी पाठ

ईसा मसीह के तरीके, मानवीय संचेतना एवं मानव जाति तथा पृथ्वी के परिवर्तनों में उनका योगदान: एक स्वतंत्र सूचना-पृष्ठ, अन्वेषण एवं अनुभव के अनेक क्षेत्रों के लिए नए दृष्टिकोणों के लिए व्यावहारिक संकेतों के साथ