यीशु का मार्ग   windows 98, ME, 2000, XP      .PDF      English

ईसा मसीह के पथ


सूचनाएँ, ईसामसीह एवं बौद्धत्व

अन्य धर्मों से सम्बन्धित हमारे अगले पृष्ठ बेहतर समझ और अंतःधर्म संवाद के प्रति एक योगदान हैं। यहाँ हम बौद्ध और ईसाई मतों, जो कि अपनी आध्यात्मिक गहराईयों के प्रति जागरूक हैं, की समानताओं और असमानताओं की चर्चा करेंगे। इस विषय में बुद्ध (500 वर्ष ईसापूर्व) के जीवन एवं शिक्षाओं का विस्तृत रूप से वर्णन नहीं किया जाएगा। आवश्यक बिन्दुओं की संक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत की जा रही है।

बुद्ध की मूल शिक्षाओं का सार-जिस पर कि ‘‘हिनाजन’’ बौद्धत्व अभी भी आधारित है, स्वयं को अधिक से अधिक सबसे पृथक करना है, जो कि किसी के भी स्वत्व से संबन्धित नहीं है। चेतना एवं ध्येय की इच्छा, जो कि कष्ट सहने के लिए प्रेरित करती है, को ‘‘स्वयं से संबन्धित न होना’’ (अनाता) की तरह पहचाना जाएगा और जो अंत में समाप्त हो जाएगी और ‘निर्वाण’ की स्थिति को प्राप्त करेगी। यह सब एक व्यावहारिक एवं अनुशासित, साधना से परिपूर्ण, जीवन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। विशेषतः बाद के ‘‘महाजन’’ बौद्धत्व मत - जिन्होंने इसके अलावा दूसरी चीजों को भी बढ़ावा दिया, जैसे कि संसार से विमुख होने के बजाए सबके साथ मानसिक समझ एवं सौहार्द रखना - कई बार इस ‘‘स्वत्व नहीं’’ के विचार की धारणा को मिथ्या समझते रहे। उन्होंने इसकी व्याख्या इस प्रकार की कि जब कोई निम्न एवं अंहकारी स्वभाव को पीछे छोड़ देता है तो कोई ‘‘मैं’’ नहीं रहता। अतः उन्होने निर्वाण की व्याख्या भी ‘‘कुछ नहीं’’ के रूप में की। जबकि बुद्ध ने स्वयं अपने उच्चतम अनुभवों (नवम चरण) के विषय में कहाः ‘‘और मैंने भी..... समय के साथ ‘न बोध न अबोध’ के क्षेत्रों के कष्टों को देखा, यह मुझे पूर्णतः स्पष्ट हो गया, और (‘मैं’’) ‘बोध और भावनाओं के समापन’ के आनंद में लीन हो गया, और मुझे मेरा भाग मिल गया। और इसलिए उस समय से मुझे मिला - ‘न बोध न अबोध’ के पूर्ण समापन के पश्चात् ‘बोध और भावनाओं का समापन’और उसमें लीन होना, और, जब मैंने यह सब बुद्धिमत्ता से पहचाना, समस्त प्रभाव समाप्त हो गए।’’ (अंगोत्तर निकज का सुत 9, क्रम 41...)

अभी तक ये समझा जा सकता है कि, ईसा मसीह भी लोगों को उनके गुणों की शुद्धि करने को प्रेरित करते हैं, और दूसरों की तुरंत आलोचना करने के स्थान पर स्वयं से आरम्भ करने का कहते हैं। (कृप्या Ways-of-christ.com  का मुख्य आलेख देखें ) । और वे स्वयं को और अपने अनुयायियों को संसार से या सांसारिक कृत्यों से सम्बंघित नहीं करते, पर मूल बुद्ध मत के मुकाबले ज्यादा साफतौर पर, उनके अनुसार वे इस संसार से नहीं हैं बल्कि इस संसार में रहते हुए और कार्य करते हुए (जारन 17), संसार को स्वर्ग में परिवर्तित करने की ओर अग्रसर हैं।

जो भी हो, जीवन के प्रश्नों पर बुद्ध और यीशु के कथनों में इतनी सारी समानताएँ हैं, कि कुछ दशकों से कुछ लोग मानते हैं कि, यीशु ने बौद्ध धर्म की शिक्षा दी होगी। पर ये सही नहीं है। इसी तरह कोई कह सकता है कि उन्होंने कोई और प्राचीन घर्म की शिक्षा दी होगी। हमारे मुख्य आलेख में यह समझाया गया है, उदाहरण के लिए, ये आंशिक समानताएँ आध्यात्मिक वास्तविकताओं के कारण हैं, जिसे हर कोई, जिसकी पहुँच है, बिना किसी की नकल किए, समान रूप से प्राप्त करेगा। ये धर्मों का शक्तिशाली बिंदु है- भौतिक और अहंकारी समाज की तुलना में- जिसका वे पर्याप्त उपयोग नहीं करते। पर धर्मो के बीच समानताएँ और सम्पर्क इस तथ्य को नहीं बदल देते कि उन सबके अपने और आंशिक तौर पर अलग अलग मार्ग हैं।

यद्यपि, जूडवादी, ईसाई-धर्म तथा इस्लाम में वे विशेषताएँ जो मनुष्य द्वारा शुद्ध की जानी चाहिए अतिरिक्त रुप से संबन्धित पापकर्मों के साथ सम्बद्ध हैं। एक ओर यह धार्मिक नैतिकता के नियमों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है; वास्तव में यह, हमें ईश्वर से पृथक करने वाले सभी अवगुणों - को अभिभूत करने से सम्बंधित है। प्रायः यह दृढ़ विश्वास है - सम्भवतः स्वयं कई बौद्धधमिर्यों में भी कि - बौद्ध धर्म में कोई ईश्वर नहीं है। अतः धर्मों की परस्पर नैतिक घोषणाएँ भौतिक जीवन से परे केवल एक "अंतिम वास्तविकता" से सम्बन्ध रखती हैं, सभी धर्मों द्वारा स्वीकृत, एकल धर्मों में उसका जो भी अर्थ हो। कम से कम यह पूर्णतः सही नहीं है । बुद्ध ने कभी नहीं कहा, कि कोई ईश्वर नहीं होगा ; किन्तु उनके समय में उन्होंने स्वयं को केवल मानवीय तरीकों की मान्यताओं के विषय में बोलने तक ही परिसीमित रखा। बुद्ध ने ब्रह्मा, हिन्दुओं के रचयिता देव, से सम्बन्धित हिन्दू पुरोहितों के प्रश्नों के उत्तर दिए: "मैं ब्रह्मा को भली-भाँति जानता हूँ, और ब्राह्मी संसार को, और ब्राह्मी संसार तक ले जाने वाले पथ को, और ब्रह्मा कैसे ब्राह्मी संसार तक पहुँचे, मैं यह भी जानता हूँ" - (दीघ निकाय, 13वीं उक्ति - धार्मिक अनुभवों से सम्बन्धित, न कि साधारणतः हिन्दुओं की पुस्तकों का ज्ञान)। हिन्दुओं के ब्रह्मा की सरलता से ईसा मसीह द्वारा अध्यापित ईश्वर से तुलना नहीं की जा सकती। बल्कि ब्रह्मा ईश्वर की आंशिक क्षमताओं के आदर्शों में से एक हैं, जो समय के साथ विभिन्न संस्कृतियों में उन्नत हुए । फिर भी, ब्रह्मा नकारात्मक शक्तियों का नाम नहीं हैं।

ईसा चरित एवं दैवीज्ञान (THE GOSPELS AND THE REVELATION) "ईश्वर" का वर्णन रचना के आरम्भकर्ता, एवं उसकी अन्तिम आपूर्ति करने वाले के रुप में करते हैं (प्रारम्भ व अंत); और अतः (वह) जो रचना से श्रेष्ठ हैं, और अंत में ईसा मसीह से पहले जिन तक नहीं पहुँचा जा सकता । जेकब बिहमे (JAKOB BOEHME) जैसे ईसाई रहस्यवादियों ने, अपने प्रमाणित करने वाले अनुभवों के अनुसार कहा, कि यह ईश्वर न केवल भौतिक संरचना की रचना से ऊपर है, बल्कि परलोक से ऊपर तथा "प्रथम दिव्य रचना" से भी ऊपर हैं। **) धर्मों की तुलना करने के लिए, अधिकांश विज्ञान-सम्बन्धी पुस्तकों का विचारण, उन्हें सम्मिलित किए बिना, जिन्हें गहन धार्मिक अनुभव हैं, अधिक सहायता नहीं करेगा।***½ इसके बिना दोनों ओर समझी जाने वाली एक भाषा को ढूँढ पाना भी संभव नहीं है ।

बौद्ध (धर्म का) पथ "निर्वाण", परे से भी परे, में प्रवेश की ओर ले जाता है, कुछ जो अधिकांश बौद्धधर्मियों के लिए ‘दूर’ की तरह है। ’’’) जैसे कि ईश्वर के साथ रहस्यमय एकीकरण ईसाईयों के लिए ‘दूर’ है। ***) तथापि, बौद्ध धर्म इस संभावना की भी शिक्षा देता है, कि एक "बौद्धिसत्व", एक "पुनर्जन्मों से मुक्त एक", स्वेच्छा से धरती पर आ सकता है, शेष मानव जाति की सहायता करने के लिए । ईसा मसीह ईश्वर की ओर अग्रसर हो गए ("और कब्र खाली थी..."; तथा पुनर्जीवन एवं आरोहण (RESURRECTION & ASCENSION), पुनः आगमन के वचन के साथ। ईसा मसीह एवं उनके तरीकों के साथ आज सबसे परे उच्चतम दैविक क्षेत्र से भौतिक स्तर तक एक व्याप्ति संभव हो पाई है।

यहाँ भी रुडोल्फ स्टीनर (RUDOLF STEINER) संभवतः उल्लेख करने योग्य हैं: उन्होंने कहा, (कि) बुद्ध प्रेम की प्रज्ञा के विषय में शिक्षा ले कर आए, एवं इसके पश्चात् ईसा मसीह प्रेम का प्रभाव लेकर आए । यहाँ बुद्ध को किसी पुरोगामी के रुप में देखा जा रहा है। जो जानना चाहता है, (कि) वास्तविकता क्या है, अपने पथ पर स्वयं ईसा मसीह एवं/अथवा बुद्ध से पूछ सकता है!

*) स्वयं बुद्ध द्वारा दी गई शिक्षाएँ के. . न्यूमैन (K.E. NEUMANN) के विस्तृत अनुवादों में पाई जा सकती हैं, "बुद्ध के प्रवचन: मध्यम संग्रह" ((Die Reden des Buddha: mittlere Sammlung) (जर्मन, संभवतः अंग्रेज़ी में भी अनुवादित) ; "दीर्घ संग्रह" (LONG COLLECTION) में भी।

**) ब्रह्म विद्या के प्रयोग वाले लोगों के लिए यह उल्लेख किया गया है, कि ब्रह्म विद्या की पारिभाषिक शब्दावली में, यथातथ्य लिया गया, निर्वाण अथवा आत्मन "परनिर्वाणिक" अथवा "महापरनिर्वाणिक लोगायोई" दैविक स्तरों के नीचे हैं।

***) मुख्यतः ईसाई रहस्यवादी मास्टर एकेहार्ट (MASTER EKKEHART) ने अपने अनुभवों को निर्वाण-अनुभव - इस शब्द के बिना - के समान वर्णित किया गया है, किन्तु एक असमानता के साथ, कि उनके लिए यह ईश्वर से मिलने से संबन्धित है।

****) संसार के रास्ते सत्व के साथ ईश्वर की ओर वापसी एक तरफ किसी वस्तु की ओर वापसी है, जो पहले ही वहाँ हर समय थी। दूसरी ओर यह कुछ अतिरिक्त है, जो पहले वहाँ नहीं थी, दो सर्वसम त्रिकोणों के समान। यह विरोधाभास केवल एक गहन रहस्मय अनुभव के साथ ही बोधगम्य है।

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मुख्य-पृष्ठ को Ways-of-Christ.com/hi

अग्रिम विषयों के साथ मुख्य अंग्रेज़ी पाठ

ईसा मसीह के तरीके, मानवीय संचेतना एवं मानव जाति तथा पृथ्वी के परिवर्तनों में उनका योगदान: एक स्वतंत्र सूचना-पृष्ठ, अन्वेषण एवं अनुभव के अनेक क्षेत्रों के लिए नए दृष्टिकोणों के लिए व्यावहारिक संकेतों के साथ